झारखंड विधानसभा चुनाव में अब एक महीने से भी कम का समय बचा है, और बीजेपी के सामने एक नई समस्या खड़ी होती नजर आ रही है। झारखंड चुनाव के लिए 66 उम्मीदवारों की घोषणा के साथ ही पार्टी में बागियों की तादाद बढ़ने लगी है। कहा जा सकता है कि बीजेपी को अब इंडिया गठबंधन के साथ-साथ पार्टी के बागियों से भी जंग लड़नी पड़ेगी।
चुनाव से ठीक पहले, बीजेपी के लिए सबसे बड़ा झटका तब लगा जब हेमंत सोरेन को हराने वाली पूर्व मंत्री लुइस मरांडी ने पार्टी छोड़कर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का दामन थाम लिया। लुइस मरांडी के साथ पूर्व बीजेपी विधायक कुणाल सारंगी और लक्ष्मण टुडू भी जेएमएम में शामिल हो गए।
बागियों का बढ़ता प्रभाव
झारखंड की 15 विधानसभा सीटों पर बीजेपी के अंदर मची बगावत ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। पार्टी के कई पुराने और कद्दावर नेताओं ने टिकट न मिलने पर बगावत का रास्ता अपनाया है। ये नेता अब या तो निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं या फिर विपक्षी दलों के साथ हाथ मिला रहे हैं। इससे पार्टी की अंदरूनी खींचतान चुनावी समीकरणों को उलट-पुलट सकती है।
नतीजों पर क्या होगा असर?
इन 15 सीटों पर बागियों की मजबूत पकड़ और स्थानीय जनता के बीच उनकी लोकप्रियता बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द बन गई है। अगर बागियों ने अपनी पकड़ बनाए रखी, तो यह सीटें बीजेपी के हाथ से फिसल सकती हैं, जिससे पार्टी को बहुमत हासिल करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही, बीजेपी के पारंपरिक वोटबैंक में भी सेंध लगने का खतरा बढ़ गया है।
बीजेपी में क्यों मची भगदड़?
पार्टी के अंदर इस भगदड़ की मुख्य वजह टिकट वितरण को माना जा रहा है। कई वरिष्ठ नेताओं को टिकट से वंचित किया गया है, जबकि नए चेहरों को मौका दिया गया है। इससे पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं में असंतोष फैल गया है। इसके अलावा, क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में न रखते हुए किए गए फैसलों से भी नाराजगी बढ़ी है।
नेतृत्व के लिए चुनौती
बीजेपी के लिए बागियों की इस चुनौती से निपटना एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। पार्टी नेतृत्व लगातार कोशिश कर रहा है कि बागियों को मनाकर चुनावी मैदान से हटाया जा सके, लेकिन अब तक इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली है। ऐसे में बीजेपी को अपने चुनावी रणनीति में बड़ा बदलाव करना पड़ सकता है।